astrology
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एक साधु अपनी मौज में चला जा रहा था कि उसे निकट के रेलवे स्टेशन पर एक ट्रेन खड़ी दिखी।
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साधु की मौज, रेल की ओर बढ़ा और फर्स्ट क्लास डिब्बे में चढ़ बैठा।
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ट्रेन चली कुछ किलोमीटर बाद एंग्लो-इंडियन टिकट चेकर जब फर्स्ट क्लास डिब्बे में आया तो आधे नंगे, चिमटा और कमंडल लिए, पालथी मारे बैठे साधु को देख अचकचा गया फिर तनिक खुद को संयत कर टिकट मांगा।
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अब साधु के पास टिकट कहाँ? साधु ने नकार में सिर हिला दिया।
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टीसी को आया गुस्सा। इतने उचक्के साधु बन घूमते हैं कि सब पर ही शंका होती है फिर वह टीसी तो था भी आधा अंग्रेज।
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उसने चार गालियाँ दी और साधु को एक फ्लैग स्टेशन पर उतार दिया। साधु भी शांति से उतरा और भूमि पर चिमटा गाड़ कर बैठ गया।
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समय पर जब ट्रेन चली तो चल ही नहीं पाई.. फुल स्टीम दे दिया, पहिये अपनी जगह पर घूमते रहे पर ट्रेन आगे न बढ़ सकी।
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गार्ड परेशान। ड्राइवर को कोई खराबी दिखे ही न। ऊपर से दूसरी ट्रेनों के आने का समय हो चला।
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तब भारतीय यात्रियों ने गार्ड से कहा कि जिस साधु को तुम लोगों ने बेइज्जत कर उतार दिया है, उससे क्षमा मांगकर ट्रेन में बिठा लो।
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ईसू मसीह के चमत्कारों पर पूर्ण विश्वास रखने वाले यूरोपियन गार्ड को किसी भारतीय साधु के ऐसे चमत्कार पर यकीन तो खैर क्या ही होता पर अन्य कोई उपाय न देख उसने साधु से गुजारिश की और उसे ट्रेन में बिठा लिया।
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अबकी गाड़ी चल पड़ी।
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इस प्रसङ्ग को के. एम. मुंशी जी ने अपने भवन्स जरनल में प्रकाशित करवाया था।
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साधु का नाम बाबा नीब करौरी महाराज
"पुण्य और कर्तव्य"
एक बार की बात है एक बहुत ही पुण्य व्यक्ति अपने परिवार सहित तीर्थ के लिए निकला। कई कोस दूर जाने के बाद पूरे परिवार को प्यास लगने लगी, ज्येष्ठ का महीना था, आस पास कहीं पानी नहीं दिखाई पड़ रहा था। उसके बच्चे प्यास से व्याकुल होने लगे। समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। अपने साथ लेकर चला गया पानी भी समाप्त हो चुका था।
एक समय ऐसा आया कि उसे भगवान से प्रार्थना करनी पड़ी कि, "हे प्रभु j
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